गुलज़ार साहेबांच्या
वाढदिवसानिमित्त... (१८
ऑगस्ट)
“जलते-बुझते,
उगते-मुरझाते, सूखे-भीगे, सहलाते-चुभते अल्फ़ाज़
और साथ में
आवाज़ की एक बूँद... या फिर बौछार...
सीने में अटकी
नज़्म
होटों पे अटके
मिसरे
आँखों के तले
जलता सपना
आईने पर छपा
हुआ चेहरा
चेहरे की नीचे
कितनी कहानियाँ
गहरी
ख़राशें... और गहरी निशानियाँ
फ़लक पे लटका
हुआ चाँद
चाँदनी से
तोड़े हुए नूर के धागे
उफ़ुक से
खडखडाता हुआ निकला सूरज
जमीं से फुटा दरिया
साहिल पे डूबा
हुआ ख़ाली समंदर
आसमाँ का खुला
कैनवस
सर पे
चिल्लाती धूप
और घर की काँच
के खिड़कियों पर संदेसे लिखने वाली बारिश...
वादियों में
गूँजती हुई ख़ामोशी
हवाओं पे लिखा
हुआ पैगाम
उड़ते पैरों के
तले बहती जमीं
पानी से लिखा
ख़ामोश सा अफ़साना
बर्फ से खेलते
बादल
सनसेट के
कच्चे रंग
धुंदलाई,
अलसायी हुई शाम
और बहारों में
मिलते पिछले मौसम के निशाँ...
किसीके बातों
में किमाम की खुशबू
किसीके पैरों
के कँवल
किसीके कमर के
बल पर मुड़ी नदी
किसीकी मद्धम
मद्धम गीली हसीं
किसीके जिगर
से जलाई हुई बीडी
किसीके ‘कारे
कारे कजरारे नैन’
माथे पर लगी
हुई किसीके होटों की मोहर
और किसीके
गालों पे पड़े हुए भँवर...
उड़ते उड़ते
अँखियों के पेंच
ख़ाली सीने में
बजती हुई साँस
ख़ता करने वाला
पुराना ‘पापी’ इश्क
कलियों के बंद
होटों पर बरसी हुई शबनम
इश्क पे
पहनाया हुआ दिल का वो लिबास
दो नैना और वो
एक कहानी
मुस्कुराने के
वो कर्ज़
और ख़ाली हाथ
आयी हुई शाम...
कभी ‘चाँद की
उतारी हुई बालियाँ’
तो कहीं ‘एक
सौ सोला चाँद की वो रातें’
वो ‘मेरा कुछ
सामान’
मीलों से छोड़े
हुए दिन
तकिये पे कभी
कभी मिलने वाली रात
वो काँच के
ख़्वाब
वक़्त की लम्बी
जम्हाई
और रात को
सुनाई हुई फिर उसी नींद की कहानी...
कतरा कतरा
मिलने वाली ज़िन्दगी
दरिया तले
ख्वाबों भरी ज़िन्दगी
धूप छाँव में
बुनी हुई ज़िन्दगी
लम्बा सफ़र तय
कर चुकी ज़िन्दगी
और सुस्त क़दम
रस्तों से … उम्र से
लम्बी सड़कों पर चलती-दौड़ती ज़िन्दगी
मिल जाएं गर कहीं...
तो बेशक आपकी
जिंदगी ‘गुलज़ार’ है |”
|| _/\_ || जन्मदिन
मुबारक हो गुलज़ार साहब || _/\_ ||